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Showing posts from August, 2020

नैतिक कहानी

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  नैतिक कहानी  एक बादशाह की आदत थी , कि वह भेस बदलकर लोगों की खैर-ख़बर लिया करता था , एक दिन अपने वज़ीर के साथ गुज़रते हुए शहर के किनारे पर पहुंचा तो देखा एक आदमी गिरा पड़ा है l बादशाह ने उसको हिलाकर देखा तो वह मर चुका था ! लोग उसके पास से गुज़र रहे थे , बादशाह ने लोगों को आवाज़ दी लेकिन कोई भी उसके नजदीक नहीं आया क्योंकि लोग बादशाह को पहचान ना सके । बादशाह ने वहां रह रहे लोगों से पूछा क्या बात है ? इस को किसी ने क्यों नहीं उठाया ? लोगों ने कहा यह बहुत बुरा और गुनाहगार इंसान है ।। बादशाह ने कहा क्या ये "इंसान" नहीं है ? और उस आदमी की लाश उठाकर उसके घर पहुंचा दी , और उसकी पत्नी को लोगों के रवैये के बारे में बताया ।।। उसकी पत्नी अपने पति की लाश देखकर रोने लगी , और कहने लगी "मैं गवाही देती हूं मेरा पति बहुत नेक इंसान है"!!!! इस बात पर बादशाह को बड़ा ताज्जुब हुआ कहने लगा "यह कैसे हो सकता है ? लोग तो इसकी बुराई कर रहे थे और तो और इसकी लाश को हाथ तक लगाने को भी तैयार ना थे ?" उसकी बीवी ने कहा "मुझे भी लोगों से यही उम्मीद थी , दरअसल हकीकत यह है कि म...

तीन मछलियां- पंचतंत्र की कहानियां

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  तीन मछलियां- पंचतंत्र की कहानियां एक नदी के किनारे उसी नदी से जुड़ा एक बड़ा जलाशय था। जलाशय में पानी गहरा होता हैं , इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी नदी से बहुत-सी मछलियां आकर रहती थी। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थी। वह जलाशय लम्बी घास व झाड़ियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से नजर नहीं आता था। उसी में तीन मछलियों का झुंड रहता था। उनके स्वभाव भिन्न थे। अन्ना संकट आने के लक्षण मिलते ही संकट टालने का उपाय करने में विश्वास रखती थी। प्रत्यु कहती थी कि संकट आने पर ही उससे बचने का यत्न करो। यद्दी का सोचना था कि संकट को टालने या उससे बचने की बात बेकार हैं करने कराने से कुछ नहीं होता जो किस्मत में लिखा है , वह होकर रहेगा ।  एक दिन शाम को मछुआरे नदी में मछलियां पकड़कर घर जा रहे थे। बहुत कम मछलियां उनके जालों में फंसी थी। अतः उनके चेहरे उदास थे। तभी उन्हें झाड़ियों के ऊपर मछलीखोर पक्षियों का झुंड जाता दिकाई दिया। सबकी चोंच में मछलियां दबी थी। वे चौंके ।    एक न...

मूर्ख बातूनी कछुआ- पंचतंत्र की कहानियां

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  मूर्ख बातूनी कछुआ- पंचतंत्र की कहानियां सुन्दर वन के एक तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक बुद्धीमान परन्तु वाचाल (ज्यादा बोलने वाला) कछुआ रहता था। तालाब के किनारे रहने वाले संकट और विकट नामक हंस से उसकी गहरी दोस्ती थी। तालाब के किनारे तीनों हर रोज खूब बातें करते और शाम होने पर अपने-अपने घरों को चल देते। एक वर्ष सुन्दर वन में जरा भी बारिश नहीं हुई। धीरे-धीरे पशु पक्षी उस जंगल को छोड़ कर अन्यत्र जाने लगे। तालाब भी सूखने लगा।     अब हंसों को कछुए की चिंता होने लगी। जब उन्होंने अपनी चिंता कछुए से कही तो कछुए ने उन्हें चिंता न करने को कहा। उसने हंसों को एक युक्ति बताई। उसने उनसे कहा कि सबसे पहले किसी पानी से लबालब तालाब की खोज करें , फिर एक लकड़ी के टुकड़े से लटकाकर उसे उस तालाब में ले चलें। उसकी बात सुनकर हंसों ने कहा कि वह तो ठीक है पर उड़ान के दौरान उसे अपना मुंह बंद रखना होगा। कछुए ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह किसी भी हालत में अपना मुंह नहीं खोलेगा। कछुए ने लकड़ी के टुकड़े को अपने दांत से पकड़ा फिर दोनो हंस उसे लेकर उड़ चले। रास्ते में नगर के लोगों ने जब देखा कि एक कछुआ आकाश में...

टिटिहरी का जोड़ा और टिटिहरे का अभिमान- पंचतंत्र की कहानियां

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  टिटिहरी का जोड़ा और टिटिहरे का अभिमान- पंचतंत्र की कहानियां किसी समुद्र तट के एक समतल भाग में एक टिटिहरी का जोडा़ रहता था । अंडे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित स्थान की खोज करने के लिये कहा । टिटिहरे ने कहा - "यहां सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं , तू चिन्ता न कर ।" टिटिहरी - "समुद्र में जब ज्वार आता है तो उसकी लहरें मतवाले हाथी को भी खींच कर ले जाती हैं , इसलिये हमें इन लहरों से दूर कोई अन्य स्थान देख रखना चाहिये ।" टिटिहरा - "समुद्र इतना दुःसाहसी नहीं है कि वह मेरी सन्तान को हानि पहुँचाये । वह मुझ से डरता है । इसलिये तुम निश्चिन्त होकर यहीं तट पर अंडे दे सकती हो ।" समुद्र ने टिटिहरे की ये बातें सुनलीं और मन ही मन सोचने लगा, "यह टिटिहरा तो बहुत बड़ा अभिमानी है । आकाश की ओर टांगें करके भी यह इसीलिये सोता है कि इन टांगों पर गिरते हुए आकाश को थाम लेगा । इसके अभिमान का भंग होना चाहिये ।" यह सोचकर उसने ज्वार आने पर टिटिहरी के अंडों को लहरों में बहा दिया । टिटिहरी जब दूसरे दिन आई तो अंडों को बहता देखकर रोती-बिलखति टिटिहरे स...