पंचतन्त्र की कहानियां - मित्रभेद प्रथम भाग
मित्रभेदमहिलारोप्य नाम के नगर में वर्धमान नाम का एक वणिक्-पुत्र रहता था । उसने धर्मयुक्त रीति से व्यापार में पर्याप्त धन पैदा किया था; किन्तु उतने से सन्तोष नहीं होता था; और भी अधिक धन कमाने की इच्छा थी । छः उपायों से ही धनोपार्जन किया जाता है---भिक्षा, राजसेवा, खेती, विद्या, सूद और व्यापार से । इनमें से व्यापार का साधन ही सर्वश्रेष्ठ है । व्यापार के भी अनेक प्रकार हैं । उनमें से सबसे अच्छा यही है कि परदेस से उत्तम वस्तुओं का संग्रह करके स्वदेश में उन्हें बेचा जाय । यही सोचकर वर्धमान ने अपने नगर से बाहिर जाने का संकल्प किया । मथुरा जाने वाले मार्ग के लिए उसने अपना रथ तैयार करवाया । रथ में दो सुन्दर, सुदृढ़ बैल लगवाए । उनके नाम थे -संजीवक और नन्दक । (आगे की कहानी के लिए कहानी के अगले भाग बंदर और लकड़ी का खूंटा का इन्तजार करें।) |
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