दुष्ट सर्प और कौवे - पंचतन्त्र की कहानियां का पांचवा भाग
दुष्ट सर्प और कौवे
एक बार जब कौआ व कव्वी जल्दी
भोजन पाकर शीघ्र ही लौट आए तो उन्होंने उस दुष्ट सर्प को अपने घोंसले में रखे
अंडों पर झपटते देखा। अंडे खाकर सर्प चला गया कौए ने कव्वी को ढाड़स बंधाया 'प्रिये, हिम्मत रखो। अब हमें शत्रु का पता चल गया हैं। कुछ उपाय भी सोच लेंगे।'
कौए ने काफ़ी सोचा विचारा और
पहले वाले घोंसले को छोड़ उससे काफ़ी ऊपर टहनी पर घोंसला बनाया और कव्वी से कहा 'यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। हमारा घोंसला पेड़ की चोटी के किनारे निकट
हैं और ऊपर आसमान में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की बैरी हैं। दुष्ट सर्प यहां
तक आने का साहस नहीं कर पाएगा।'
कौवे की बात मानकर कौव्वी ने
नए घोंसले में अंडे दिए जिसमे अंडे सुरक्षित रहे और उनमें से बच्चे भी निकल आए।
उधर सर्प उनका घोंसला ख़ाली देखकर यह समझा कि उसके डर से कौआ कव्वी शायद वहां से
चले गए हैं पर दुष्ट सर्प टोह लेता रहता था। उसने देखा कि कौआ-कव्वी उसी पेड़ से
उड़ते हैं और लौटते भी वहीं हैं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने नया
घोंसला उसी पेड़ पर ऊपर बना रखा हैं।
एक दिन सर्प खोह से निकला और
उसने कौओं का नया घोंसला खोज लिया। घोंसले में कौआ दंपती के तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट
सर्प उन्हें एक-एक करके घपाघप निगल गया और अपने खोह में लौटकर डकारें लेने लगा।
कौआ व कव्वी लौटे तो घोंसला ख़ाली पाकर सन्न रह गए। घोंसले में हुई टूट-फूट व
नन्हें कौओं के कोमल पंख बिखरे देखकर वह सारा माजरा समझ गए। कव्वी की छाती तो दुख
से फटने लगी। कव्वी बिलख उठी ' और रोते हुए कहने लगी,तो क्या हर वर्ष मेरे बच्चे
सांप का भोजन बनते रहेंगे?'
कौआ बोला 'नहीं! यह माना कि हमारे सामने विकट समस्या हैं पर यहां से भागना ही उसका हल
नहीं हैं। विपत्ति के समय ही मित्र काम आते हैं। हमें लोमड़ी मित्र से सलाह लेनी
चाहिए।'
दोनों तुरंत ही लोमड़ी के पास
गए। लोमड़ी ने अपने मित्रों की दुख भरी कहानी सुनी। उसने कौआ तथा कव्वी के आंसू
पोंछे। लोमड़ी ने काफ़ी सोचने के बाद कहा 'मित्रो! तुम्हें वह पेड़ छोड़कर जाने की जरुरत नहीं हैं। मेरे दिमाग में एक
तरकीब हैं, जिससे उस दुष्टसर्प से छुटकारा पाया जा सकता हैं।' लोमड़ी ने अपने चतुर दिमाग में आई तरकीब बताई। लोमड़ी की तरकीब सुनकर
कौआ-कव्वी खुशी से उछल पड़ें। उन्होंने लोमड़ी को धन्यवाद दिया और अपने घर लौट
आएं।
अगले ही दिन योजना अमल में
लानी थी। उसी वन में बहुत बड़ा सरोवर था। उसमें कमल और नरगिस के फूल खिले रहते थे।
हर मंगलवार को उस प्रदेश की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां जल-क्रीड़ा करने
आती थी। उनके साथ अंगरक्षक तथा सैनिक भी आते थे।
इस बार राजकुमारी आई और सरोवर
में स्नान करने जल में उतरी तो योजना के अनुसार कौआ उड़ता हुआ वहां आया। उसने
सरोवर तट पर राजकुमारी तथा उसकी सहेलियों द्वारा उतारकर रखे गए कपड़ों व आभूषणों
पर नजर डाली। कपड़े के ऊपर राजकुमारी का प्रिय हीरे व मोतियों का विलक्षण हार रखा
था कौव्वी ने राजकुमारी तथा सहेलियों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ‘कांव-कांव’ का शोर मचाया।
जब सबकी नजर उसकी ओर घूमी तो
कौआ राजकुमारी का हार चोंच में दबाकर ऊपर उड़ गया। सभी सहेलियां चीखी 'देखो, देखो! वह राजकुमारी का हार उठाकर ले जा रहा हैं।' सैनिकों ने ऊपर देखा तो सचमुच एक कौआ हार लेकर धीरे-धीरे उड़ता जा रहा था।
सैनिक उसी दिशा में दौड़ने लगे। कौआ सैनिकों को अपने पीछे लगाकर धीरे-धीरे उड़ता
हुआ उसी पेड़ की ओर ले आया।
जब सैनिक कुछ ही दूर रह गए तो
कौए ने राजकुमारी का हार इस प्रकार गिराया कि वह सांप वाले खोह के भीतर जा गिरा।
सैनिक दौड़कर खोह के पास पहुंचे। उनके सरदार ने खोह के भीतर झांका। उसने वहां हार
और उसके पास में ही एक काले सर्प को कुडंली मारे देखा।
वह चिल्लाया 'पीछे हटो! अंदर एक नाग हैं।' सरदार ने खोह के भीतर भाला मारा। सर्प घायल हुआ और फुफकारता हुआ बाहर निकला।
जैसे ही वह बाहर आया, सैनिकों ने भालों से उसके
टुकडे-टुकडे कर डाले। इस प्रकार राजकुमारी का विलक्षण हार सैनिकों के द्वारा सर्प
को मार कर राजकुमारी को वापस किया गया । और कौआ-कौव्वी को दुष्ट सर्प से छुटकारा
भी मिल गया।
इस कहानी को सुना कर दमनक ने करटक से कहा कि माना कि मै दोनो से कमजोर हू वस्तुतः मै दोनो के मध्य द्वेष उत्पन्न करा कर दुश्मनी जरूर करा सकता हू जिसके उपरान्त राजा द्वारा संजीवक (बैल) को मृत्यू लोक भेजा जा सकता है।
सीख : सूझ बूझ का उपयोग कर हम बड़ी से बड़ी ताकत और दुश्मन को हरा सकते हैं, बुद्धि का प्रयोग करके हर संकट का हल निकाला जा सकता है।
अगली कहानी के लिये पढे
मूर्ख साधू और ठग
https://panchtrantrastrories.blogspot.com/2020/07/blog-post_8.html
ReplyDeleteExactly isiliye lagatar kosis krtr rhna chaiye kbh na kbh success jarur honge.....
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